Description
श्रीमद्भागवतम् की महानता के विषय में कुछ लिखना शायद मेरे लिए सम्भव नहीं है। जब मेरे आदरणीय गुरु महाराज कृष्णकृपाश्रीमूर्ति ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद पहली बार अमरीका पहुँचे, उस समय धन के नाम पर उनके पास मात्र चालीस रुपये थे। परन्तु उनके पास एक ऐसी सम्पत्ति थी जो अमूल्य थी। वह सम्पत्ति थी श्रीमद्भागवतम् के पहले स्कन्ध की पुस्तकों से भरे तीन ट्रक, जिन्हें उन्होंने दिल्ली से मुद्रित किया था। आने वाले वर्षों में श्रील प्रभुपाद ने अन्तर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत की स्थापना की और उनके मन में श्रीमद्भागवतम् की अपनी टीका को पूरा करने की अभिलाषा बनी रही। और उसे पूरा करने के लिए उन्होंने दिन-रात कितना अथक परिश्रम किया।
श्रील प्रभुपाद द्वारा अनुवादित श्रीमद्भागवतम् का अध्ययन करने वाले भक्त अवश्य ही उनके तात्पयों की गहनता, मधुरता तथा जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य की ओर मार्गदर्शन करने की क्षमता से भली-भाँति परिचित होंगे। हम इस्कॉन के भक्तों के लिए श्रीमद्भागवतम् कितनी महत्वपूर्ण है, इसे समझाने के लिए मैं निवेदन करूंगा कि आप चैतन्य चरितामृत में श्रीमद्भागवतम् से उद्घृत श्लोकों की गिनती करें।
मैं जानता हूँ कि पूर्णप्रज्ञ दास ने अत्यन्त गहरायी तथा सच्ची भक्तिभावना से श्रीमद्भागवतम् का अध्ययन किया है। उनके मुख से इस अनमोल ग्रंथ को कथारूप में सुनना निश्चित् ही भक्ति के मधुर फल का आस्वादन करने के समान है। उन्होंने इस पुस्तक में श्रीमद्भागवतम् की समस्त कथाओं को समाविष्ट किया है और साथ ही उनसे मिलने वाली शिक्षाओं को भी सुन्दरता से संक्षिप्त किया है। यह उनकी रचना की विशेषता है।
श्रीमदभागवतम् के लोलुप पाठक निश्चित ही इस पुस्तक की सराहना करेंगे, क्योंकि एक गम्भीर छात्र सदैव अन्य गम्भीर छात्रों की सराहना करता है। और जो भक्त थोड़े नये हैं, अथवा जिन्होंने अभी तक श्रील प्रभुपाद की श्रीमद्भागवतम् का पूरी तरह अध्ययन नहीं किया है, उनके लिए भी यह पुस्तक एक विशेष उपहार सिद्ध होगी। मैं यह इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि इस पुस्तक के माध्यम से अधिक समय एवं शक्ति खर्च किये बिना व्यक्ति के मन में श्रीमद्भागवतम् के प्रति पर्याप्त सराहना उत्पन्न हो जायेगी। मैं उन सब भक्तों से इस पुस्तक को पढ़ने का आग्रह करता हूँ जो सच्चे हृदय से कृष्णभक्ति में प्रगति करने के इच्छुक हैं।
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